लंदन। महिलाओं के लिए गर्भनिरोधक दवाएं तो दशकों से मौजूद हैं, लेकिन पुरुषों के लिए ऐसी कोई गोली उपलब्ध नहीं है। मगर अब वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि वे पुरुष गर्भनिरोधक दवा बनाने की प्रक्रिया के काफी करीब पहुंच गए हैं। वैज्ञानिकों ने चूहों पर इसका सफल परीक्षण भी किया है।
पुरुषों के लिए गर्भनिरोधक गोली न होने की वजह से बड़ी संख्या में अनियोजित गर्भ धारण करने के मामले सामने आते रहे हैं। वैज्ञानिकों के सामने चुनौती एक ऐसी दवा बनाने की थी, जो खून से सीधे अंडकोष में जा सके।
यह शोध अमेरिकी पत्रिका सेल में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, चूहों पर दवा के परीक्षण से उनकी यौन क्रियाओं पर असर नहीं पड़ा, लेकिन उनकी प्रजनन क्षमता अस्थाई तौर पर समाप्त हो गई। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, यह परीक्षण काफी उत्साहपूर्ण है, इंसान पर इसका परीक्षण होना अभी बाकी है। डाना फार्बर कैंसर इंस्टीट्यूट एंड बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसन में अमेरिकी शोधकर्ता 'जेक्यू1' नाम की दवा का परीक्षण कर रहे थे। यह दवा प्रोटीन की एक किस्म पर निशाना साधती है, जो सिर्फ अंडकोष में ही पाया जाता है और शुक्राणु उत्पादन में अहम भूमिका निभाता है। जिन चूहों को दवा दी गई, उनके अंडकोष सिकुड़ने लगे। शुक्राणु कम होने लगे और कुछ की प्रजनन क्षमता अस्थाई तौर पर चली गई।
यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड के डॉक्टर ऐलन पेसी ने बताया कि अब तक जितने भी परीक्षण हुए हैं, उनमें इंजेक्शन या इम्प्लांट के जरिए टेस्टोस्टिरोन हार्मोन से छेड़छाड़ की जाती थी, ताकि शुक्राणु न बन सकें, लेकिन यह तकनीक रुटीन इस्तेमाल में नहीं लाई जा सकी। इसलिए ऐसी दवा की जरूरत है, जो हार्मोन पर निर्भर न हो।
Source - jagaran
पुरुषों के लिए गर्भनिरोधक गोली न होने की वजह से बड़ी संख्या में अनियोजित गर्भ धारण करने के मामले सामने आते रहे हैं। वैज्ञानिकों के सामने चुनौती एक ऐसी दवा बनाने की थी, जो खून से सीधे अंडकोष में जा सके।
यह शोध अमेरिकी पत्रिका सेल में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, चूहों पर दवा के परीक्षण से उनकी यौन क्रियाओं पर असर नहीं पड़ा, लेकिन उनकी प्रजनन क्षमता अस्थाई तौर पर समाप्त हो गई। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, यह परीक्षण काफी उत्साहपूर्ण है, इंसान पर इसका परीक्षण होना अभी बाकी है। डाना फार्बर कैंसर इंस्टीट्यूट एंड बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसन में अमेरिकी शोधकर्ता 'जेक्यू1' नाम की दवा का परीक्षण कर रहे थे। यह दवा प्रोटीन की एक किस्म पर निशाना साधती है, जो सिर्फ अंडकोष में ही पाया जाता है और शुक्राणु उत्पादन में अहम भूमिका निभाता है। जिन चूहों को दवा दी गई, उनके अंडकोष सिकुड़ने लगे। शुक्राणु कम होने लगे और कुछ की प्रजनन क्षमता अस्थाई तौर पर चली गई।
यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड के डॉक्टर ऐलन पेसी ने बताया कि अब तक जितने भी परीक्षण हुए हैं, उनमें इंजेक्शन या इम्प्लांट के जरिए टेस्टोस्टिरोन हार्मोन से छेड़छाड़ की जाती थी, ताकि शुक्राणु न बन सकें, लेकिन यह तकनीक रुटीन इस्तेमाल में नहीं लाई जा सकी। इसलिए ऐसी दवा की जरूरत है, जो हार्मोन पर निर्भर न हो।
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