परिचय :- गोरक्षासन का नाम महान योगी गोरक्षनाथ के नाम पर पड़ा है क्योंकि योगी गोरक्षनाथ प्रायः इसी आसन में बैठा करते थे।
इस आसन के अभ्यास से जड़ता नष्ट होने में , शरीर का पतला होने , बुद्धि तीक्षण होने, चित्त की चंचलता कम होने इत्यादि में लाभ मिलता है। शरीर शुद्धिकरन में अपना योगदान देता है।
विधि
- सबसे पहले आप जमीन पर बैठकर पांव सामने फैलाएं।
- पांवों को घुटनों से मोड़ें और अब दोनों पैरों की एडि़यां एक साथ ले आएं।
- आगे बढ़ें और शरीर को ऊपर उठाकर एडि़यों पर बैठ जाएं। ध्यान रहे छाती न मुड़े।
- दोनों घुटने जमीन से सटा हुआ रहना चाहिए।
- हाथ घुटनों पर रखें।
- रीढ़ और गर्दन सीधी रखें।
- जब तक संभव हो इसी मुद्रा में रहें और उसके बाद आरंभिक अवस्था में लौट आएं।
- यह एक चक्र हुआ।
- इस तरह आप 3 से 5 चक्र करें।
लाभ
- गोरक्षासन किडनी के लिए: गोरक्षासन किडनी के विभिन्य विकारों में लाभकारी है।
- गोरक्षासन बवासीर में: इस आसन के अभ्यास से बवासीर में बहुत लाभ मिलता है।
- गोरक्षासन घुटनों को मजबूत बनाने में: इस आसन के नियमित अभ्यास से घुटने के जोड़ों, टखने (Ankle) और कूल्हे (Hips), नितम्ब (Buttocks), पिंडलियों (Calves) के भाग की अकड़न (spasm ) एवं कठोरता दूर करने में मदद मिलती है।
- गोरक्षासन शरीर संतुलन में: यह योगाभ्यास शरीर के संतुलन बनाए रखने में मददगार है।
- स्नायु के शक्ति के लिए: इस आसन के अभ्यास से शरीर के नेर्वेस (Nerves) को बल मिलता है।
- पाचन क्रिया को स्ट्रांग बनाता है: इस आसन के अभ्यास से भोजन का अच्छी तरह से पाचन हो जाता है जसके कारण मलमूत्र सही मात्रा में शरीर से निकलता है।
- गर्भास्य के लिए लाभदायक: इसके नियमित अभ्यास से स्त्रियों के गर्भाशय से संबंधित रोगों को दूर करने में मदद मिलती है।
- पेट गैस से निजात: यह योगाभ्यास आपको पेट से सम्बंधित गैस को कम करने में मदद देता है।
- कुण्डिलिनी जागरण में सहायक: यह कुण्डिलिनी योग अभ्यास का अहम पाट है।
सावधानी
- अगर आप मोटापा से ग्रस्त हैं तो इस आसन को बहुत सावधानी के साथ या किसी विशेषज्ञ के सामने करें।
- अगर घुटनों में दर्द हो तो इस आसन का अभ्यास न करें।
- एड़ी में दर्द होने पर भी इस योगाभ्यास को नहीं करनी चाहिए।