हड्डियों के टूटने के कारण -
1. सीधी चोट - जहां चोट लगे वही की हड्डी टूटे, ऐसी चोट को सीधी चोट कहते है जैसे बांह पर लाठी लगने से बांह की हड्डी टूटना ।
2. कुटिल चोट - चोट किसी स्थान पर लगे और हड्डी किसी दूसरे स्थान की टूटे ऐसी चोट कुटिल चोट कहलाती है जैसे - हथेली के बल गिरने से हंसली की हड्डी टूटना तथा एडियो के बल गिरने से रीढ़ की या खोपड़ी के तले की हड्डी टूटना ।
3. मांस पेशियों का तनाव - मांस पेशियो के अत्यधिक तनाव में भी हड्डी टूट जाती है जैसे खेलते या दौड़ते समय घुटने की पटेला अस्थि का टूट जाना अथवा मरोड़ने पर कलाई या कुहनी पर से हाथ की हड्डियों का टूट जाना ।
हड्डियों के टूट जाने के प्रकार -
1.साधारण या बंद टूट - जिसमे हड्डी टूट कर न तो खाल फाड़ कर बाहर निकले और न ही किसी अन्य अंग को घायल करे, बल्कि हड्डी के दो या अधिक टुकड़े हो जाए ।
2. विशेष या खुली टूट - जब हड्डी के सिरे खाल फाड़ बाहर निकल आए ।
3. उलझी हुई टूट - जब हड्डी टूट कर किसी कोमल अंग की घायल कर दे जैसे मस्तिष्क, फेफड़े,जिगर, तिल्ली,सुषुम्ना इत्यादि में घुस जाए ।
4.बहुखंडी टूट - जिसमे हड्डी हड्डी के दो से अधिक टुकड़े हो जाए ।
5. पच्वडी टूट - जिसमे टूटी हुई हड्डी का एक सिरा दूसरे सिरे में घुस जाए ।
6. दबी टूट - जब हड्डी टूट क्र नीचे धंस जाए जैसे खोपड़ी की हड्डी की टूट ।
7.कच्ची टूट - जब टूटे नही केवल मुड़ जाए या चटक जाए ऐसी टूट केवल छोटे बच्चो की हड्डियों की होती है, क्योकि उनकी हड्डियाँ हरी डालियों की तरह मुलायम होती है ।
हड्डियों के टूटने के लक्षण -
1.सूजन - हड्डी की टूट के स्थान पर सूजन हो जाती है ।
2.दर्द - टूट के स्थान को छूने से दर्द होता है ।
3.आकृति बिगड़ जाना - हड्डी टूटने पर अंग की स्वाभाविक आकृति नही रहती हड्डी की टूट का स्थान कुछ उभर आता है या नग उस स्थान से टेढ़ा हो जाता है ।
4.लम्बाई घट जाना - हड्डी टूटने पर मांस पेशियो के तनाव के कारण अंग की लम्बाई कम हो जाती है परंतु हाथ की रेडियम और अलना दोनों हड्डियो में एक के टूटने पर लम्बाई में अंतर नही आता दूसरी सबूत हड्डी लम्बाई को बनाए रखती है इसी प्रकार पैर की टिबिया और फीबुला हड्डियों में से एक के टूटने पर लम्बाई कम नही होती ।
5.शक्तिहीन - जिस अंग की हड्डी टूट जाती उस अंग व्दारा कोई भी काम नही किया जा सकता अंग को हिलाने -डुलाने की भी शक्ति नही रहती ।
6.अस्थियो की विषमता - किसी भी अंग की हड्डी टूटने पर वह अंग ऊपर से सामान्य स्थिति में नही रहता टटोलने से हड्डी की विषमता का अनुभव की जा सकती है ।
7.अस्वाभिक गति - शरीर के अंग प्राकृतिक रचना के अनुशार केवल जोड़ो पर से हिल दुल सकते है परन्तु हड्डी टूटने पर टूट के स्थान पर भी अंग हिलने लगता है ।
8.किकिरहट - जिस अंग की हड्डी टूटी हो उस अंग को हिलाने से टूटी हुई के सर आपस में रगड क्र किकिरहट की आवाज पैदा करते है ।
सावधानिया -
1.उपरोक्त आठो लक्षणों में से यदि पहले छ: लक्षण मिल जाए तो निश्चित समझना चाहिए की हड्डी टूट गई हुई है अंतिम दो लक्षणों को देखने का प्रयत्न नही करना चाहिए अन्यथा एंड टूट से खुली या उलझी हुई टूट बन सकती है यदि फर्स्ट ऐड के समय स्वयं ही ये दो लक्षण प्रकट हो जाये तो ये निर्णयात्मक लक्षण होंगे ।
2. हड्डी टूटने पर आकृति बिगड़ जाने और अंग छोटा हो जाने का निर्णय घायल अंग इ स्वस्थ अंग से तुलना करने से किया जा सकता है ।
हड्डियो की टूट के सामान्य फर्स्ट ऐड -
1.यदि कही रक्त स्त्राव है तो तुरंत बंद करे ध्यान रखे की हड्डी टूटे अंग को बिलकुल हिलाये - दुलाये नही ।
2.यदि संभव हो तो घटना- स्थल पर ही घायल का फर्स्ट ऐड करे यदि घायल को घटना स्थल से तुरंत हटाना ही पड़े तो हड्डी टूटे अंग को बांधकर अस्थायी रूप से स्थिर कर दे और अत्यंत सावधानी पूर्वक उठाए ताकि हड्डी की टूट का स्थान बिलकुल न हिले ।
3.हड्डी टूटे अंग को पटरियाँ बांधकर स्थिर कर दे ताकि वह अंग बिलकुल भी हिल - डुल न सके अंग के हिलने से हानि होने का भय रहता है बंद,टूट, खुली अथवा उलझी हुई टूट में बदल सकती है और रक्त वहिनिया अथवा मांस पेशियाँ फट जाती है ।
4.यदि आघात के लक्षण हो तो आघात से रक्षा करे ।
5. यदि यह समझते हो की घायल को बेहोश करने की आवश्यकता पड़ेगी तो खाने - पीने को कुछ न दो बल्कि पानी में एक चुटकी नमक या मीठा सोडा मिलाकर, अथवा हल्की चाय दे प्रायः रीढ़ की हड्डी, जांघ की हड्डी जैसी बड़ी हड्डियों की टूट में घायल को तुरंत बेहोश करना पड़ता है।